कुछ सप्ताह
पहले हिंदी गजलों
की एक पुस्तक आई है “धानी चुनर”। इस पुस्तक के लेखक हैं नवीन सी चतुर्वेदी, जो अनेक विधाओं व भाषाओँ में सृजन
करने वाले कवि / लेखक हैं। इस पुस्तक का श्रीगणेश
गणपति, शारदे, शिव, राम, कृष्ण, जगदम्बा एवं गुरू
वन्दना जैसी ईश आराधनाओं के साथ किया गया है, जो हमें पुरातन सनातन सरोकारों की याद दिलाता है
। शायर नवीन सी चतुर्वेदी ने अपनी हिंदी गजलों
में अरबी, फारसी शब्दों का
न्यूनतम प्रयोग किया है। बहुत सारे ऐसे शब्द हैं जो हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं
और शायरी में जिनका धड़ल्ले से इस्तेमाल होते हैं मगर शायर ने उनके ऐसे विकल्प प्रस्तुत
किये जो हमारे लिये अजनबी नहीं हैं जैसे कि
हुजूर, जनाब, साहब के लिए मान्यवर, महोदय, आदरणीय, श्रीमान
शायद के लिए
क्वचित, कदाचित
दरअसल के
लिए वस्तुतः
अक्सर के लिए बहुधा
वरना के लिए अन्यथा
आखिरकार के लिए अन्ततोगत्वा
उसके बाद के लिए तदोपरान्त
लफ्फाज के
लिए शब्द-सन्धानी (यह नया शब्द प्रयोग
है)
सुबूत के लिए साक्ष्य
एक बार के
लिए एकदा
हासिल के
लिए हस्तगत आदि आदि।
आवश्यकतानुसार
जहाँ क्रियाकलाप, शून्यकाल, निम्नांकित, आयुक्त, उच्चायुक्त, जैसे तकनीकी शब्दों
से भी काम लिया है वहीँ अन्तर्भुक्त, श्रेयस्कर, दग्ध-अन्तस, स्वयमेव, योग कीजिए, सदृश, सर्वमान्य जैसे शब्दों को भी बड़ी ही चतुराई के साथ बरता है।
भारतीय चरित्रों की बात करें तो विश्वामित्र, सहस्रबाहु, परशुराम, धृतराष्ट्र, भीष्म, दुष्यंत-शकुन्तला, वेदव्यास, भारद्वाज, युयुत्सु, चरक, सुभद्रा, आम्रपाली, पद्मिनी, द्रौपदी, तारा, अहिल्या, रुक्मिणी, मन्दोदरी, मन्थरा, कैकेइ, भर्तृहरि, आर्यभट्ट, दधीची, दुर्वासा, चार्वाक, भरत-मुनि, उर्मिला, सौमित्र, चित्रगुप्त, इन्द्र, जरासंध के पुत्र
सहदेव, रुकमी, रुक्मणि, शिशुपाल, जयद्रथ, अभिमन्यु, अरावन जैसे चरित्रों
के माध्यम से भी शेर कहे गये हैं ।
'धानी चुनर' के चुनिंदा शेर आप के रसास्वादन के लिए-
हास परिहास
उसने पूछा प्रीत है तो कह दिया हाँ प्रीत है,
हम भलेमानुस
हैं हमको झोलझाल आते नहीं
व्यर्थ साधो बन रहे हो कामना तो कर चुके हो,
उर्वशी से
प्रेम की तुम याचना तो कर चुके हो
कटाक्ष वाले शेर
कौओं के कुल में जब कुहू-कुहू होती है,
सारे क्रिया-कलाप समझ आने लगते हैं
ध्यान कर रहे हैं किन्तु वासना में हैं मगन
आजकल तो जाने
कैसे-कैसे व्यक्ति बुद्ध
हैं
नारीशक्ति को सम्बोधित करते शेर
क्या तुम्हें अनुभव नहीं नारी का बैरी कौन है,
फिर भी लड़ना
है परस्पर तो प्रभंजन मत करो
किसलिए तारा, अहिल्या, द्रौपदी बनती हो तुम
मानिनी ऐसे
स्वयं का मानमर्दन मत करो
अपनी रूचि के वस्त्र पहनने का अधिकार सभी को है
किन्तु अकारण
अंग प्रदर्शन करते रहना अनुचित है
भारतीय दर्शन के शेर
चिता पर हो पिता और पुत्र सिर को चोट पहुँचाये
ये ऐसा कृत्य
है जो उच्चतम सम्मान जैसा है
आधुनिकता के वकीलो आधुनिक तब भी थे हम,
जब कराया
था जगत को सृष्टि-दर्शन झाग में
छोटी बहर का जादू
पृष्ठ तो पूरा धवल था
रंग उकेरे
तूलिका ने
बन चुके होते
सूर या तुलसी
शारदे की
कृपाएँ होतीं तो
बड़ी बहर के शेर
हर नवीन लड़ने वाला असमंजस में पड़ ही जाता है
किस-किस अर्जुन को कब तक गीता के
पाठ पढ़ाएँ कान्हा
लाड़ली बेटी सुनो तुम मात्र लैला ही नहीं हो, तुम सुभद्रा, आम्रपाली, पद्मिनी भी हो
बस तुहिन-कण ही नहीं हो, बस झमाझम ही नहीं
हो, तुम हिमालय की सुता
मन्दाकिनी भी हो
जब-जब सत्ता धृतराष्ट्रों की दासी बनती है
तब-तब सर-शय्या पर भीष्म लिटाये जाते हैं
इस पुस्तक
को पढने के बाद याद आता है कि आपातकाल के दौरान दुष्यंत के शेर बहुत प्रसिद्ध हुए जिनके
चलते लोगों ने दुष्यंत को हिंदी का पहला मशहूर शायर माना । मतलब दुष्यंत की शायरी को हिंदी की शायरी माना गया
। हिंदी और अंग्रेजी की गजल में क्या अंतर है, इसे लेकर भी उहापोह
रही है। यह देखने
में आया कि देवनागरी लिपि में लिखे गए शेर हिंदी के शेर और फारसी लिपि में लिखे गए
शेर उर्दू के शेर माने जाते रहे हैं । पर लिपि मात्र बदलने से तो भाषा नहीं बदलती।
इस विषय पर
बहुभाषी गजलकार नवीन सी. चतुर्वेदी प्रश्न
उठाते हैं
कि अगर गीता के श्लोकों को रोमन लिपि में लिख दिया जाए तो क्या वे अंग्रेजी के श्लोक
हो जायेंगे ? अवधी की रामायण को फारसी लिपि में लिखने से क्या वह अरबी या फारसी या उर्दू
की हो जायेगी ? क्या मीर
और गालिब के शेर देवनागरी लिपि में लिख देने भर से हिंदी के शेर हो जायेंगे ? और अपनी 'धानी चुनर'
की हिन्दीगजलों के माध्यम से उत्तर भी देते हैं कि भाषा और लिपि दो अलग बातें हैं ।
यदि गजलें हिंदी भाषा में हैं तो हिंदी परिवेश जैसे कि शब्द, चरित्र, कथानक आदि भी
हिंदी पृष्ठभूमि के होने चाहिए । फिर भी सत्य यही है कि हमलोग पिछले कई दशकों से अदम गोंडवी, चंद्रसेन विराट, जहीर कुरैशी सहित
सैंकड़ों गजलकारों की देवनागरी लिपि में लिखी गयी गजलों को हिंदी गजलें मान कर पढ़ते
रहे हैं । ऐसे में हिन्दीगजल के क्षेत्र में नवीन सी. चतुर्वेदी का यह प्रयोग लोगों को कैसा लगता है तथा
और कितने शायर इस शैली को अपनाते हैं इन बातों का उत्तर भविष्य ही दे पायेगा । मैं
इस अभिनव और साहसिक प्रयोग के लिए नवीन सी. चतुर्वेदी को बधाई देता हूँ ।
एम एल गुप्ता ‘आदित्य’
निदेशक, वैश्विक हिंदी सम्मेलन
शायर सम्पर्क - 9967024593
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