15 अगस्त 2025

 

नमस्कार, 

विभिन्न भाषाओं की स्वीकार्य, सम्भाव्य एवं रुचिकर विविध विधाओं के प्रकाशन के लिए समर्पित वेबपोर्टल साहित्यम के सद्याद्यतन में निम्नलिखित कृतियों का समावेश किया गया है. 


1.       दोहे – के. पी. अनमोल

2.       अवधी निर्गुण – पूनम विश्वकर्मा

3.       तज़मीन – यशपाल सिंह ‘यश

4.       व्यंग्य – साहित्य का रेंगता कीड़ा – मुकेश असीमित

5.       कहानी – भूख – रचना निर्मल

6.       ग़ज़ल – मैं देखता रहा फूलों के हुस्ने-फ़ानी को - दिनेश नायडू

7.       ગુજરાતી ગઝલ - યંત્ર છે કે માનવી, બસ સમજાતું નથી - ભારતી ગડા

8.       मराठी गझल - करत आहेस तू अभ्यास कसला  - जयदीप जोशी

9.       ग़ज़ल - अब तजरबा भी कर लिया पढ़ ली किताब भी - तनोज दाधीचि

10.   गीत - राग हैं कुछ गुनगुनाने शेष अब तक - अशोक अग्रवाल 'नूर'

11.   कविता - मैं दुखी हूँ - सन्ध्या यादव

12.   ग़ज़ल - लगता है जी रहे हैं जैसे  किसी क़फ़स में  - देवमणि पाण्डेय

13.   ग़ज़ल - सानेहा जिस्म बेबसी हासिल - नवीन जोशी नवा

14.   व्यंग्य -  आ बैल मुझे मार - अर्चना चतुर्वेदी

15.   नवगीत - गीतों में दुनिया को गाना - सीमा अग्रवाल

आशा करते हैं आप इन्हें अपेक्षा के अनुरूप पायेंगे. पढ़कर कैसा लगा सम्बन्धित कृति में टिपण्णी रूप में अंकित करने की कृपा करें. यदि आप भी अपनी कृतियों को यहाँ प्रकाशित करवाना चाहते हैं तो अपनी कृति को फोटो के साथ ईमेल करने की कृपा करें. आपके हितकर सुझावों का भी सहर्ष स्वागत है. ध्यातव्य रहे कि सर्वज्ञात सामान्य अनुशासन का अनुपालन सुखमय वातावरण के लिए अपरिहार्य होता है.

 

सादर सप्रेम जय श्री कृष्ण

 

नवीन सी. चतुर्वेदी

ब्रजगजल प्रवर्तक एवं बहुभाषी शायर

मथुरा – मुम्बई

9967024593

navincchaturvedi@gmail.com


ग़ज़ल - ख़्वाब जैसा ही इक रतजगा हो गया - प्रज्ञा शर्मा

  

ख़्वाब जैसा ही इक रतजगा हो गया 

मैं तेरी हो गई तू मेरा हो गया

 

ये वही वक़्त था ये वही शाम थी

हम क़रीब आ गए और क्या हो गया

 

चाँदनी हो के मैं झील में घुल गई

रात होते ही तू चाँद सा हो गया

 

फिर वो तेरे ख़यालों के बादल घिरे

कितना दिलकश ये रँग -ए- फ़ज़ा हो गया

 

तूने इतनी मोहब्बत से देखा मुझे

मेरे एहसास में सब नया हो गया

 

तुझसे तुझसा ही कोई हुआ जो अलग

मुझसे मुझसा ही कोई जुदा हो गया

 

कुछ न हासिल हुआ इस सफ़र से मगर

कम से कम रास्ता तो पता हो गया

दोहे - के पी अनमोल

 


ज्यूँ सहरा में रेत है,  पानी में है मीन। 

तेरे मन में मैं रहूँ,  कह भी दे आमीन।।

 

करता रहता है सदा,  मन तेरा ही जाप।

कान लगाकर सुन कभी,  साँसों की पदचाप।।

 

अपना ले या फूँक दे,  ओ रे मेरे पीर!

अब तेरे ही नाम है,  इस दिल की जागीर।।

 

उस पल में कैसा अजब,  जादू था मनमीत।

जिसमें मैं संगीत था,  तू प्यारा-सा गीत।।

 

भाव हज़ारों हैं मगरशब्द नहीं हैं चार।।

दिल से दिल की बात काकैसे हो इज़हार। 


तितली जी ने आज फिरचूम लिया है फूल।

यानी शर्तें प्यार कीफिर से हुई क़ुबूल।।

 

जब गिरती है पेड़ परचमकीली-सी धूप।

खिल-खिल उठता है तभीहर पत्ती का रूप।।


यार ख़ुदा के वास्तेयह भी कर इक रोज़। 

बेटे की सब ख़ूबियाँबेटी में भी खोज।।

 

कितने बौने हो गयेकायनात के हाथ।

माँबीवीबेटीबहनखड़ी हुईं जब साथ।।


बारिश बारिश ही नहींहै कुदरत का प्यार। 

सावन में तुम देखनापेड़ों का आकार।।

 

रखवालों की सोच मेंआयी जबसे खोट।

तबसे पर्वत झेलतेरोज़ नए विस्फोट।।

 

गाएँ छाया खोजतींपंछी ढूँढे नीड़।

हम अपने में मस्त हैंकब समझेंगे पीड़।।

 

सोच रहा हूँ देखकरमैं नदियों का हाल।

क्या भीतर से हम सभीइतने हैं कंगाल।।


बेटे ने दहलीज़ केबाहर रक्खे पाँव।  

सूना-सूना हो गयामाँ के मन का गाँव।।


भीतर भी इक जंग हैंबाहर भी है जंग। 

और नहीं आते मुझेलड़ने वाले ढंग।।


दो हिस्सों में बँट गयाजब-जब इक परिवार। 

तब धरती की देह कोबोझ लगी दीवार।।

 

नदियाजंगलरास्तेपर्वतसागरझील।

चलता जाता है सफ़रबनती जाती रील।।

 

बातों-बातों में मुझेकहकर भाईजान।

गरज पड़ी तो कर गयारिश्ते का सम्मान।।


बच्चे को जब लग गयी,  दुनिया की कुछ आँच। 

चुटकी में करने लगा,  दो और दो को पाँच।।

अवधी निर्गुण - पूनम विश्वकर्मा

  


वन-वन भटकत प्रेम चिरइया

नहीं कटत वनवास रे,

पिय से मिलन की आस रे मोहे,

मोहे पिय से मिलन की आस रे।

 

भइल बा जर्जर तन के ठठरिया,

उठत न भारी करम गठरिया,

घुटि-घुटि तड़पत साँस रे,

पिय से मिलन की आस।

 

मोह सखी काहें रोकत जबरी,

प्रियतम प्रीत लगन बेसबरी।

मैली धानी देख चुनरिया,

रूठ न जाए मोर संवरिया।

सोचे मनवा उदास रे।

पिय से मिलन की आस रे।

 

प्रियतम पूछिहंइ विरह के बेला,

खेललू हे गोरी कवन तू खेला?

देखिहंइ बलम जब मैली चुनरिया,

कइसे मिलाइब ओनसे नजरिया

लेहले नयन में पियास रे।

पिय से मिलन की आस रे।

 

वन-वन भटकत प्रेम चिरइया

नहीं कटत वनवास रे,

पिय से मिलन की आस रे मोहे,

मोहे पिय से मिलन की आस रे।

तज़मीन - यशपाल सिंह 'यश'

  


न जाना कि आँसू बहाता है कोई 

न जाना कि ग़म को छुपाता है कोई

न जाना कि हस्ती मिटाता है कोई

"न जाना कि दुनिया से जाता है कोई

बहुत देर की मेहरबाँ आते-आते"

 

यशपाल सिंह 'यश


मूल शेर दाग़ देहलवी साहब का है 


कहानी - भूख - रचना निर्मल

 

मोबाइल की छोटी सी स्क्रीन और अनलिमिटेड डाटा के रूप में चालीस साल की रीमा के हाथ मशहूर होने का नायाब तरीका लग गया था। वो कहीं भी किसी भी जगह यानि पार्कसड़कबाज़ार,माॅलमेट्रोरेस्टरां घर के किसी कोने में खड़ी हो कर कुछ भी स्टाइल से बोलकरअपने यूट्यूब चैनल,इंस्टा या फेसबुक पर पोस्ट कर देती थी। 

बस... सिलसिला शुरू हो जाता था लाइक देखने का और कमैंट्स पर थैंक्यू कहने का । कहीं भी होउसके कान नोटिफिकेशन की टुन पर लगे रहते थे । खुद से ही कहती थी," "वाऊ,रीमा यू आर सो स्मार्ट,..कीप इट अप। तुम्हें न किसी स्टेज़ की ज़रूरत और न ही किसी प्रमोटर की..प्रमोशन विदाउट मनी"। लाइक्स,फाॅलोअर्ससब्सक्राइबर्स बढ़ रहे थे .. गिव एंड टेक ...के सहारे यानी आप मेरी पोस्ट पर कमेंट करेंगे तो हम आप की पोस्ट पर। अच्छे से जानती थी कि आधे से ज्यादा लोग पूरा वीडियो नहीं देखते ।पर उसे मतलब तो लाइक और पापुलैरिटी से ही था ।

कितनी बार पति से भी इस चक्कर में लड़ाई हो चुकी थी। पता नहीं क्यों उन्हें टू मिनट मैगी से इतनी एलर्जी थीहुं ..पेट ही तो भरना है ,मेरे हाथ के खाने की इतनी लालच क्यूँ..!! मेरी भूख तो एक पानी की बोतल और एक लाइक से ही मिट जाती है ।उन्हें तो मेरे यानि रीमा के "अप टू डेट" होने पर भी एतराज़ है।बस..वे तो बचत करो का राग अलापते हैं।”

बाकी परिवार वाले भी उसकी इन हरकतों से चिढ़ते थे क्योंकि कई काम और फोन इन सबके चक्कर में रीमा रद्द कर चुकी थी।उस दिन भी पति के आफिस से फोन लगातार आता जा रहा थाऔर रीमा उसे काटती जा रही थी।अभी- अभी तो उसने यूट्यूब पर अपनी वीडियो डाली थी अभी उसे सभी जगह शेयर करना था। रात बीते अचानक पति का ध्यान आया।" ओओ.. लेट आने के चक्कर में काॅल कर रहे होंगे। लगता है खाना बाहर ही खाकर आएँगे ,अच्छा है खाना बनाने से जान छुटी।” रीमा ने सोचा और फ़ोन लेकर बैठ गई।

अचानक घड़ी में रात के डेढ़ बजे देखकर रीमा को घबराहट हुई।अरे इतनी देर हो गई ,पतिदेव अब तक नहीं आए,अब क्या करुँ,किसे फोन करुँ..!जो नाम याद आ रहे थे वो सभी आभासी दुनिया के थे‌ ।

     ढूंढ ढाँढ कर उनके एक दोस्त का नंबर मिलाया। बहुत बार मिलाने के बाद वहाँ से आवाज़ आई, "भाभी,रवि मैक्स में एड्मिट हैकार्डिएक अरेस्ट आया है। रीमा के हाथ पांव फूल गए। मुझे बताया क्यों नहीं"?वह चिल्लाई।भाभीबहुत बार फोन मिलाया,पर आप काटती ही जा रही थीं।हम लोग तुरंत उन्हें अस्पताल ले आए ..!!”

   रीमा वहीं धम्म से सोफे पर बैठ गई। हाए ये क्या हो गया ..अब क्या करुँ किस से मदद माँगूँ । उसे कुछ नहीं सूझ रहा था ..वो खुद को बिल्कुल अकेला महसूस कर रही थी।शोहरत की भूख दीमक की तरह उसके प्यार और उसके संबंधों को खा चुकी थी।

 ओह ..मैंने फोन क्यों नहीं उठाया... ।

फ़ेस बुक की नोटिफिकेशन की टुन सीधे हथौड़े की तरह अब उसके दिल और दिमाग़ पर पड़ रही थी।

हारकर काँपते हाथों से देवर को फोन मिलाया।पता नहीं फोन उठाएगा या नहीं,उठा भी लिया तो पता नहीं क्या-क्या सुनाएगा।परवहाँ से पहली बार में फोन उठ भी गया। हैलो की आवाज़ सुनते ही रीमा की रुलाई छुट गई। "भाभीआप जल्दी आ जाइए,मैं भैया के पास ही हूँ।" कहकर फोन रख दिया था।

आँखों में आँसू लिए रीमा अपने नाज़ुक रिश्ते को संभालने निकल पड़ी।

ग़ज़ल - मैं देखता रहा फूलों के हुस्ने-फ़ानी को - दिनेश नायडू

 


मैं देखता रहा फूलों के हुस्ने-फ़ानी को 

मेरी नज़र नहीं लग जाए इस जवानी को

 

हमारी दीदा-ए-तर का कोई क़ुसूर नहीं

लहू का नाम दिया जा रहा है पानी को

 

मिटा दिया मेरा किरदार ज़िन्दगी तू ने

उरूज मिल गया आख़िर मेरी कहानी को

 

धुआँ अलाव का ऐ काश घोंट दे मेरा दम

जला रहा हूँ तेरी आख़िरी निशानी को

 

तेरा ख़याल मेरी शायरी पे हावी है

कहाँ से ढूँढ के लाऊँ मैं तेरे सानी को

 

नदी ने खींच दी सरहद मेरी बसारत की

उफ़ुक़ ने बाँध दिया मेरी बे-करानी को

 

कोई भी हुस्न नहीं है तेरी ग़ज़ल में 'दिनेश'

कोई तो रंग नया देता नौहा-ख़्वानी को


मराठी गझल - करत आहेस तू अभ्यास कसला - जयदीप जोशी

 


करत आहेस तू अभ्यास कसला 

कुठे आहे तुला व्यवहार कळला

 

दिसत होती नदीडोंगरदऱ्याही

क्षणार्धातच किती अंधार पडला

 

कवडसे स्पर्श करणारे हरवले

कुणाचा आरसा कोणी बदलला?

 

दिव्याची ज्योत होती उंच त्याच्या

दिव्याखाली कमी अंधार दिसला

 

घरी दुसरे कुणी नव्हते म्हणूनच

पुन्हा टीशर्ट ला मी हात पुसला

 

पुन्हा मी एक पारंबी पकडली

पुन्हा झटक्यात माझा हात सुटला

 

कळत नाहीकशाला मिम करावे?

कधी जो दुखवला नसतादुखवला

 

असे आहेस तू बोलत स्वतःशी

जणू आहेस तू इतिहास रचला