01.10.2025

नमस्कार

नवरात्रों का आनन्द लेते हुए आप सभी को विजयादशमी की अग्रिम शुभकामनाएं. उत्तरोत्तर अपने गन्तव्य की दिशा में अग्रगामी वेबपोर्टल साहित्यम के वर्तमानाद्यातन के साथ हम पुनः उपस्थित हैं. 

गीत - क्या प्रणय अभिशाप है प्रिय - उदय दिवाकर पाण्डेय

 

क्या प्रणय के पथ में किंचित्

भी थकन अब पाप है प्रिय?

क्या प्रणय अभिशाप है प्रिय?

नज़्म - ख़ार - इस्मत ज़ैदी शिफ़ा

 


फूलों से लदे इन बाग़ों की

और रंग बिरंगे फूलों की

हर कोई सिफ़त बतलाता है

हर कोई ख़ुशी जतलाता है

कविता - श्रापित खण्डहर - अनामिका प्रवीण शर्मा

 


किसी दिन

किसी कविता में

मैं लिखूँगी उन तमाम औरतों की जीवनी

जो नज़रबंद थीं

इन  ऊँची ऊँची

किलों की दीवारों के पीछे

मुक्तक - आशू शर्मा

 


अपनी गुल्लक फोड़ के बैठी हुई है।

एक गहरी सोच में डूबी हुई है। 

क्यों दिला पाई न बच्चे को खिलौना,

ख़ुद से मां इस बात पे रूठी हुई है।

बालगीत - दिल्ली वाले दादाजी - आशा पाण्डेय ओझा 'आशा'

 


आये घर पर आज हमारे दिल्ली वाले दादाजी ।

दादाजी के भाई प्यारे दिल्ली वाले दादाजी ।।

 

खाने वाली चीजें लाये , ढेरों खेल-खिलौने भी।

भूआ के जो नन्हा - मुन्ना उसके लिए बिछौने भी,

नवगीत - मौन नहीं रहिए - राम निहोर तिवारी

 


मौन नहीं रहिए -


उजियाले की हार देखकर

मौन नहीं रहिए. 


अखबारों के खोजी-खबरी

सम्पादक चुप हैं.

जन-जीवन की व्यथा-कथा के -

अनुवादक चुप हैं.

दोहे - डाॅ.मधुर बिहारी गोस्वामी

 


अपने ही कहने लगेंजाओ अब तो दूर ।

तब लगती  है चोट जब, दिखता गहन गरूर।।

 

बूढ़ा तन-मन सोच में, होता है बेचैन।

तब होती है पीर जब, सुनता तीखे बैन।।

घनाक्षरी छन्द - राजेन्द्र स्वर्णकार

 


यश अर्थ प्रशंसा न संतुष्टि सम्मान मिले,

ऐसी निरर्थक कविताई मत कीजिए !

व्यंग्य - मिडिल क्लास- द डोनर - समीक्षा तैलंग

दान-पुण्य की बातें हम न करें तो कौन करेगा!! भारत में जन्म लेनेवाला, दान का भाव साथ लेकर जन्मता है। बात ये है कि वे भी और हम भी इसी माटी के हैं। समय के साथ वे जोंक बन गए और हम मनुष्य के मनुष्य ही रहे। उन्हें जोंक का आहार-व्यवहार बड़ा पसन्द आता। हमारे लिए नापसन्दगी जैसा कुछ था ही नहीं,,,। हमारी जुर्रत भी नहीं थी कि हम अपनी पसन्द बतायें। हम तो वे हैं जो ट्रेन की निचली बर्थ देकर मिडिल पर एडजस्ट हो जाते हैं। जरूरत पड़े तो बस के बोनट पर आराम भी फरमा लेते हैं।

लघुकथा - जूण - डॉ. शील कौशिक

शाम के समय पार्क से उठकर औरतें अपने-अपने ठिकानों पर चल पड़ी। नीता और शीतल पार्क के गेट से बाहर निकल रही थी कि सामने मादा कुक्कर पर नज़र पड़ी। दोनों के मुँह से एक साथ निकला, "हे भगवान! फिर से पेट से है यह तो। अभी कुछ दिन पहले ही तो जने थे पूरे छह पिल्ले...

कहानी - बेवकूफ – वन्दना बाजपेयी

टिंग-टॉंगटिंग-टॉंगटिंग-टॉंग। “कौन है?” मैंने शॉल हटाते हुए पूछा। “पोस्टमैन” उधर से आवाज आयी। “आती हूँ” कहते हुए मैं चप्पलें पैर में फँसाने लगी। फँसाने इसलिए कि चिट्ठी लेकर मेरा फिर से सोने का इरादा था। वैसे भी छुट्टियाँ कम ही मिलती हैं उस पर छुट्टी

संस्कृत गजल - पक्ष्मणोरालम्बितस्य हार्द्रस्वप्नस्याधुना - डा० लक्ष्मीनारायणपाण्डेयः


 

संस्कृत (गज्जलिका भावानुवाद सहिता)

 

पक्ष्मणोरालम्बितस्य हार्द्रस्वप्नस्याधुना

भावयामि मौक्तिकाभासे मुदा सञ्जीवनम् ।

हिन्दी गजल - बलवती होती व्यथायें क्या करें - विवेक मिश्र

 


बलवती होती  व्यथायें    क्या करें 

खत्म  हैं   संभावनायें     क्या करें

 

आ गईं होकर विवश कुरुक्षेत्र तक

पांडवों  की  याचनायें    क्या करें

ગુજરાતી ગઝલ - આપે છે ક્યાં મૃગજળ સુધ્ધાં - સુરેશ ઝવેરી

 


આપે છે ક્યાં મૃગજળ સુધ્ધાં !

માગી   લે   છે  ઝાકળ  સુધ્ધાં.

 

લાખ   હકીકત   આપી  દીધી,

આપી  દીધી  અટકળ  સુધ્ધાં.

मराठी गझल - करायचे ते करून झाले अता न काही करणे - प्रदीप निफाडकर

 


करायचे ते करून झाले अता न काही करणे 

गझलेसाठी जगणे आणिक गझलेसाठी मरणे

 

आठवणींनी धरले आहे माझ्या दारी धरणे

तशी मागणी मोठी नाही, केवळ मी मोहरणे

हिमाचली गजल - पाह्या ऐ पळेस तिजो कुसा अलाचारिया - द्विजेन्द्र द्विज

 


पाह्या ऐ पळेस तिजो कुसा अलाचारिया 

बाँदर नचाणा  लगा  तिज्जो इ मदारिया

 

उमराँ जो ठगी लेया मोर भी धुआरिया

पैर जे बटाये फिरी ट्हाये नीं घुटारिया

ब्रजगजल - बरसाने तक अइवे में ही मेरी सगरी उमर गुजर गई - अनिमेष शर्मा 'अनिमेष'

 


बरसाने तक अइवे में ही  मेरी सगरी उमर गुजर गई

राधा तोय  रिझइवे में ही  मेरी सगरी उमर गुजर गई

 

तेरे  बिन  अब  नहीं  सटैगी  तो  पै  रीझ  गयो मेरौ  मन

इतनी बात  बतइवे में ही  मेरी सगरी  उमर गुजर गई

ब्रजगजल - या में बस एक अद्भुत यही बात है - ज्ञानप्रकाश गर्ग

 


या में बस एक अद्भुत यही बात है

प्रीत में रीत देखी नहीं जात है

 

या कों ब्यौपार कह कें न लज्जित करौ

प्रियतमे प्रीत जीवन की सौगात है

हरियाणवी गजल - बैठक पौली बूढ़े स्याणे कम होगे - शिवचरण शर्मा 'मुज्तर'

 

 

बैठक  पौली   बूढ़े  स्याणे  कम  होगे

साँखी फ्हाली ज़कड़ी लाणे कम होगे

 

पहल्यां आली  बात  रही  ना कोए बी 

खंडका  धोती  दामण आणे कम होगे